LDC (पंचायती राज विभाग) में बड़ा फ़र्जीवाड़ा: LDC भर्ती 2013 में 277 को मिली जाली प्रमाणपत्रों पर नियुक्ति!

LDC (पंचायती राज विभाग) में बड़ा फ़र्जीवाड़ा: LDC भर्ती 2013 में 277 को मिली जाली प्रमाणपत्रों पर नियुक्ति!

राजस्थान के पंचायती राज विभाग में हुए LDC भर्ती 2013 में एक बड़ा खुलासा सामने आया है। इस भर्ती में न केवल टायपिंग टेस्ट (Typing Test) को नियमित किया गया, बल्कि फर्जी डिप्लोमा (Fake Diploma) और अनुभव प्रमाण पत्रों (Experience Certificates) के आधार पर 277 लोगों को नियुक्तियां दे दी गईं। यह एक गंभीर भर्ती घोटाला (Recruitment Scam) है, जिसमें करोड़ों रुपये का वेतन भी ऐसे कर्मचारियों को दिया जा चुका है।

आइए इस पूरे मामले की परतें खोलते हैं और समझते हैं कि कैसे यह फ़र्जीवाड़ा अंजाम दिया गया।

फर्जी प्रमाणपत्रों पर 277 नियुक्तियां (277 Appointments on Fake Certificates)

2013 और 2022 की पंचायती राज विभाग में हुई LDC भर्ती में यह चौंकाने वाला नया फ़र्जीवाड़ा सामने आया है। खबर के अनुसार, 15 हज़ार भर्तियों वाले इस मामले में सिर्फ़ टाइप टेस्ट को नियमित ही नहीं किया गया, बल्कि कई नए अभ्यर्थी भी ऐसे सामने आए हैं जिन्हें फर्जी अहर्ता प्रमाण पत्र और अनुभव प्रमाण पत्र तक मिले।

कुल 277 कर्मचारियों के मामले में उनके प्रमाण पत्र और अनुभव प्रमाण पत्र दोनों फर्जी पाए गए हैं। विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों ने अन्य मामले उजागर नहीं होने दिए। अब फर्जी नियुक्तियों का मामला उजागर होने के बाद विभाग में अहर्ता और अनुभव प्रमाण पत्रों के फ़र्जीवाड़े पर हड़कंप मच गया है।

कंप्यूटर डिप्लोमा और अनुभव प्रमाणपत्र (Computer Diploma & Experience Certificates): अदालत में पेश किए गए दस्तावेजों में सामने आया है कि बड़ी संख्या में ऐसे अभ्यर्थी थे, जिन्होंने कंप्यूटर डिप्लोमा और अनुभव प्रमाण पत्र राजस्थान कंप्यूटर डिप्लोंमाधारक बेरोजगार एसोसिएशन के ऑफ़ कैंपस डिप्लोमा संबंधित कर दिए थे। यह प्रमाण पत्र फर्जी था।

सत्यापन के समय बदले गए सर्टिफिकेट (Certificates Changed During Verification)

फ़र्जी प्रमाणपत्रों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। 2013 में हुई भर्ती प्रक्रिया में ऑनलाइन आवेदन मांगे गए थे। उस समय बड़ी संख्या में ऐसे अभ्यर्थी थे, जिन्होंने अपने कंप्यूटर डिप्लोमा और अनुभव प्रमाण पत्र कुछ और लगाए थे, और भर्ती के दौरान जब प्रमाणपत्रों का भौतिक सत्यापन (Physical Verification) किया गया, उस समय वे उनसे अलग थे। यानी, वे सत्यापन के समय फर्जी या बदले हुए दस्तावेज़ लेकर आए।

सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी ऑफ़ कैंपस प्रमाणपत्र को बताया अमान्य (Supreme Court Declared Off-Campus Certificates Invalid)

सर्वोच्च न्यायालय ने 2005 के एक प्रकरण प्रो. यशपाल बनाम छत्तीसगढ़ सरकार के निर्णय में कहा था कि किसी भी विश्वविद्यालय को राज्य की सीमा से बाहर ऑफ़ कैंपस स्टडी सेंटर (Off-Campus Study Center) चलाने की अनुमति नहीं है। इसकी अवमानना (Contempt of Court) देते हुए 2018 में पंचायती राज विभाग ने राजस्थान हाईकोर्ट में 277 कर्मचारियों के ऑफ़ कैंपस प्रमाणपत्रों को अमान्य ठहराया था।

विभाग ने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि भोपाल और मौलाना जेयू मिलेगा के ऑफ़ कैंपस डीसीए-डिप्लोमा सर्टिफिकेट को अवैध माना था।

आवेदक बदलकर पत्नी को करा दी भर्ती (Applicant Changed, Wife Appointed)

इस भर्ती में आवेदक ही बदलकर किसी अन्य व्यक्ति को भर्ती करने के मामले भी सामने आ रहे हैं। जिला परिषद जयपुर के एक आदेश में इस बात का खुलासा हुआ है। 2013 में किए गए आवेदनों में अंजलि गुप्ता (Anjali Gupta) नाम से एक फ्रेश आवेदन आया था।

जिला परिषद में भर्ती संबंधी मामलों के एक बाबू संदीप वर्मा (Sandeep Verma) ने अपनी पत्नी अंजलि चंद्रा (Anjali Chandra) के नाम से नवीन आवेदन तैयार कर उस पर फर्जी तरीके से अंजलि गुप्ता की एप्लीकेशन आईडी और टोकन नंबर डालकर नियुक्ति करा दी। यानी, आवेदन तो अंजलि गुप्ता का था और भर्ती अंजलि चंद्रा की। ऐसे और भी मामलों में जांच चल रही है।

कोर्ट का आदेश, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं (Court Order, Still No Action)

फ़र्जीवाड़े और नियमों के उल्लंघन के बावजूद, इन मामलों में धीमी गति से कार्रवाई हो रही है। झुंझुनूं के कुछ याचिकाकर्ताओं के मामले में हाईकोर्ट ने जांच के लिए एसएमआईटी (SMIT) गठित कर 6 माह में रिपोर्ट मांगी थी। पिछले दिनों ही इस संबंध में एक फर्जी डिप्लोमाधारी के खिलाफ FIR (First Information Report) भी दर्ज हुई है।

हटाने के आदेश सिर्फ़ कागजों पर: पंचायती राज विभाग के तत्कालीन सचिवों ने फर्जी सर्टिफिकेट और अनुभव प्रमाण पत्र के मामले में सभी जिला परिषदों के सीईओ (CEO) को लिखित में आदेश दिए थे कि इन पर कार्रवाई करें। ऐसे एक आदेश 13 जून 2018 को भी निकाला गया था। लेकिन, इस पर अभी तक कोई अमल नहीं हुआ है।

अब तक सवा सौ करोड़ से ज़्यादा वेतन ले चुके कर्मचारी (Employees Have Drawn Over 125 Crores in Salary So Far)

कोर्ट में प्रस्तुत रिकॉर्ड के अनुसार, 277 कर्मचारी 2013 से अब तक सवा सौ करोड़ रुपये (Over 125 Crores) का वेतन उठा चुके हैं। 2018 में सरकार ने एक हलफनामा (Affidavit) दिया था कि यदि उसके बाद भी इन पर कार्रवाई होती और न्यूनतम वेतन को भी आधार बनाते तो वेतन के 70 करोड़ रुपये तो कम से कम बचाए ही जा सकते थे। यह दिखाता है कि इस फ़र्जीवाड़े से सरकारी खजाने को कितना बड़ा नुकसान हुआ है।

मदन दिलावर, पंचायती राज मंत्री, ने बताया कि 2013 की LDC भर्ती के मामले में फर्जी टाइप टेस्ट को नियमित करने के अलावा कई गड़बड़ियां हुई हैं। सभी मामलों में फर्जी सर्टिफिकेट के मामलों की जांच हो रही है।

निष्कर्ष (Conclusion)

पंचायती राज विभाग में यह LDC भर्ती घोटाला सरकारी प्रणाली में भ्रष्टाचार और लापरवाही का एक गंभीर उदाहरण है। फर्जी प्रमाणपत्रों पर नियुक्तियां और सालों तक उन पर कार्रवाई न होना, न केवल सरकारी खजाने पर बोझ है, बल्कि योग्य उम्मीदवारों के साथ भी बड़ा अन्याय है। यह ज़रूरी है कि इस मामले में तेज़ और निष्पक्ष कार्रवाई (Swift and Impartial Action) हो, दोषियों को सज़ा मिले, और भविष्य में ऐसे फ़र्जीवाड़े को रोकने के लिए पुख्ता सिस्टम बनाए जाएं।

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